श्री सुशील बनर्जी जो भारत के ्प्रधानमंत्री के सचिव हुआ करते थे बताते है
मेरे पिताजी बाबा के अन्नय भक्त थे ! तब बाबा जी नैनीताल से हमारे घर पधारे , एकाएक वे जोर जोर से सिसकिया लेने लगे ! और कम्बल में अपना मूँह छुपा लिया ! काफी देर रोने के बाद वे उठ खडे हुये और जाने लगे ! पिताजी ने रोका पर वह नही माने तब मैं भी उनके पीछे पीछे चल पडा ! बाबा जी सीधे हैडाखान होते हुये पैदल मार्ग से निकल पडे और सीधे सेनेटोरियम पहुँच कर बडी तेजी से एक कमरे में घुस गये ! वहाँ एक मरीज अपनी आखिरी साँसे गिन रहा था ! बाबा को देखते ही वह अत्यंत प्रसन्न होकर बोला — ” बाबा जी मैं बडी देर से आपको याद कर रहा था आप के दर्शनों के लिये ! आप आ गये !”. उखडती साँसो में इतना कहने के बाद बाबा के समक्ष उसने प्राण त्याग दिये !
उक्त भक्त की पुकार में बाबा जी के दर्शन हेतु जो आतर्ता थी , उसने बाबा जी का आसन हिला दिया ! बाबा जी की इस दया मुर्ति के दर्शन कर मेरा अन्तर भर गया !
जय गुरूदेव
पुस्तक अनंत कथा अमृत से