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महाराजजी “Guru of gurus”

भारत सदैव श्रषि-मुनियों की धरती रही है। पुरातन काल से लेकर अभी तक भारत ने बहुत से महात्माओं को देखा है, महात्माओं ने ही आध्यात्म जगत को पुन: भारत में स्थापित किया था। संतो की पावन भूमि को हमेशा संतो ने ही संभाला है। संत और महात्मा लोग हमारे जीवन को प्रकाशवान करते ही हैं , साथ ही साथ अपनी समस्त सुख- सुविधाओं को त्यागकर विश्व का भी कल्याण करते हैं। एक ऐसे ही परम संत जोकि हनुमान जी के परम भक्त थे, बहुत से लोग तो उन्हें साक्षात हनुमान जी ही कहते थे। उन्होनें अपनी शरण में आये अनेक निराश भक्तों उचित मार्गदर्शन देकर सद्कार्यों के लिए प्रेरित किया और उन्हें भक्ति , ज्ञान एवं सेवा का मार्ग दिखाकर उनके जीवन को सार्थक बनाया । उनके दरबार में भक्तों का तांता लगा ही रहता था । महाराज जी किसी भी भक्त में भेदभाव नहीं करते थे, चाहें वह भक्त धनवान हो या फिर नितांत गरीब | वे हैं श्री नीब करौरी बाबा जो साक्षात कलियुग में हनुमान जी के ही अवतार हैं। अतुलित बलधाम, दयानिधान, दीनों के दाता, सभी के प्रिय, संसार को एक नजर से देखने बाले, सिद्धों के सिद्ध, गुरुओं के गुरू, किसी के लिए महाराजजी, किसी के बाबा, किसी के भगवान, किसी के नारायण, किसी के हनुमान स्वरुप, किसी के अन्नदाता, सदा शिव एकादस रुद्रावतार बाबा नीब करौरी जी महाराज के चरणों में कोटि कोटि वंदन, नमन, प्रणाम……

वैसे तो हमारे महाराजजी की ख्याति इतनी है की हमें परिचय देने की जरूरत नहीं, और हम इस लायक भी नहीं की कुछ भी अपने महाराजजी के बारे में उनकी प्रेरणा के बिना कह सकें| ये उनकी ही
प्रेरणा है जो आज ये सब कर पा रहा हूँ, समुद्र में बूँद मात्र………

बाबा जी का जन्म-बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा एवं माँ का नाम श्री मती कौशल्या देवी था। बाबा जी ने 27 नवंबर सन् 1903 में मार्गशीर्ष माह शुक्लपक्ष अष्टमी को दिन शुक्रवार को जन्म लिया था, और उनका जन्म से ही लक्ष्मी नारायण नाम रख दिया गया| (कहीं कहीं बाबा जी के जन्म को लेकर 30 नवंबर सन 1900 दिन शुक्रवार भी मानते हैं। )

बाबा जी का जन्म स्थान – बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के अकबरपुर ग्राम में जो हिरन गाँव रेलवे स्टेशन के पास नागऊ ग्राम सभा के अंतर्गत है तब जिला आगरा था अभी ये गाँव फिरोजाबाद जिले में आता है| बाबा जी का परिवार एक धनाड्य संस्कारी जमीदार परिवार था जहाँ किसी भी सुख सुविधा कि कोई कमी न थी|

बाबा जी की वचपन में लीलाएँ- वचपन में ही बाबा जी विचित्र स्वभाव के थे | उनकी जीवनशैली एकांतप्रिय और शांत थी बहुत काम उम्र में ही लगभग पांच या छः वर्ष में ही उन्होंने अपने पिता से घर में डांका पडने की भविष्यवाणी दिन में ही करदी थी पर सभी ने उसे मात्र एक बच्चे की बात समझ टाल दिया उसी रात घर में बहुत बड़ी चोरी हुई| तब से पिता जी उन्हें घर में ही रहने के लिए जोर देने लगे | उनकी वैराज्ञता को देख वो चिंतित थे| बाबा जी का विवाह ११ वर्ष कि आयु में ही कर दिया गया था |

बाबा जी का घर गृहत्याग- (बाबा जी ने अपना घर दो बार छोड़ा 1913 में लगभग और दूसरी बार 1958 में जब बाबा जी के दो पुत्र और एक पुत्री जीवन यापन हेतु आत्मनिर्भर होगये) बाबा जी ने इतने बंधनों के बाबजूद १३ वर्ष कि आयु में घर छोड़ दिया| अभी बाबा जी विवाहित थे पर अभी गौना नहीं हुआ था | और बाबा जी के लिए कदाचित इस विवाह से कोई आशय भी नहीं था | उन्हें तो बस राम काज करनें थे | घर छोडने पर भी बाबा जी ने लीला दिखाई बाबा जी की सगी माँ वचपन में ही साथ छोड़ गईं| पिता जी ने बाबा जी की देखरेख के लिए दूसरी शादी की जब बाबा जी को घर छोडना था तब एक अनोखी लीला रची पिता जी किसी काम बस दो तीन दिनों के लिए बाहर जाने को थे बाबा जी ने कोई ऐसा कार्य किया की पिता जी ने नाराज होकर उनकी माँ से उन्हें कमरे में बंद करने को कहदिया और स्वयं अपने कार्य से बाहर चले गए | उनकी सौतेली माँ ने उन्हें कमरे में बंद कर दिया | और वे बाबा जी की उपस्थिति को दो दिनों तक भूली रहीं| बाबा जी तीसरे दिन ऊपर एक छोटे से रोशनदान तक लकड़ी के सहारे चडे और उसकी
लोहे की छड़ी निकाल कर अपने कपडे ले कर दूसरी और कूद गए और गाँव से निकल गए तभी किसी ने जाते हुए उन्हें देखा लिया और उनकी माँ को बताया तब घर में जानकारी हुई | और बाबा जी ने घर छोड़ दिया| जन्म से ही अंतर्मन से परम वैरागी बाबा जी के लिए विमाता का यह व्यवहार तो मात्र बहाना था गृह त्याग के लिए | अकबरपुर ग्राम के ही लोग कहते थे – बाकी डोर तो सदा राम में ही लगी हती|

बाबा जी की तपस्या और तपस्थली- घर छोड़ कर बाबा जी गुजरात के मोरवी नामक स्थान से लगभाग ४० किलोमीटर दूर एक वैष्णव संत के पास बबानियाँ ग्राम में पहुंचे| यहाँ बाबा जी तथाकथित योग साधना में रत रहे| यहीं उनका नाम बाबा लक्षमनदास पड़गया|इस आश्रम के पास एक तालाब था जिसमें बाबा जी खुद को गर्दन तक डूबा लेते थे और दीन् दुनियां से दूर खुद को राम नाम में समेटे रहते थे | यहाँ पर एक पेड़ था जिस पर चरवाहे लडके जो गाय-बकरियां चराने आते थे अपना भोजन पेड़ पर लटका देते थे | जब वे इसे खाने आतेतो पाते पात्र और पोटली खाली है| तब वे तालाब के अंदर पत्थर फेंक कर कहते हमारा भोजन बापस करो और बाबा जी तालाब से अलग अलग प्रकार के पकवान फ़ेंक कर देते | बाबा जी का नाम यहाँ तलैया बाबा पड़ा| बाबा जी ने यहाँ छः या सात वर्ष साधना की| महाराजजी द्वारा की गईं ऐसी प्रारंभिक क्रियाओं को हम तपस्या और साधना कहते है किन्तु ये तो उनकी त्रिगुणात्मक काया के परिष्करण हेतु की गई क्रिया मात्र थीं न् की सिद्धियाँ प्राप्त करने हेतु साधना या तपस्या| स्वयं सिद्ध रूप अवतरित महाराजजी को इस तपस्या की आवश्यकता नहीं थी | परन्तु त्रिगुणी माया से संभूत तथा प्राप्त को पंचभूतों – पंचतत्वों के आकर्षण से मुक्त रखने हेतु रजोगुणी तमो गुनी तत्वों का विभिन्न क्रियाओं द्वारा शुद्धिकरण  हर अवतारी विभूति को करना पडता है|सभी अवतारी विभूतियों ने गुरु आश्रमों या अन्य जगहों पर ये साधना की | बाबा जी कभी कभी यो ही अपनी मौज में कह देते थे – “पूरन १७ वर्ष की आयु में ही हमें कुछ भी करना शेष नहीं रहा गया था| “ बाबा जी ने यहाँ खुले स्थान में तालाब के किनारे एक हनुमान मूर्ती की स्थापना भी की और बाद में इस आश्रम को रमा बाई नामक एक महिला संत को सौप कर पुनःभारत भ्रमण को चल दिए | यहाँ से निकल कर महाराजजी दक्षिण भारत भ्रमण पर भी निकल गए जहाँ हनुमान मंदिरों का भ्रमण किया | इस समय के दौरान उन्हें लक्ष्मण दास, हांडी बाबा, और तिकोनिया बाबा सहित कई नामों से जाना जाता था। वृन्दावन में जब बाबा जी आये तो लोग उन्हें लोग चमत्कारी बाबा कहते थे|

बाबा जी की कार्यस्थली- बाबा जी की प्रथम कार्यस्थली नीब करौरी धाम को ही माना जाना चाहिए | कहा जाता है कि- बाबा जी एक दम युवा स्वरुप में कमण्डल चिमटे के साथ चेहरे पर अलौकिक तेज लिए रेलगाड़ी के प्रथम श्रेणी डिब्बे में बैठे थे | इसे बाबा जी की लीला ही कहेंगे की जिसे जन्म जात सिद्धियाँ प्राप्त हों उसे गाड़ी की
भला क्या आवश्यकता| लेकिन अपनी अलौकिकता और विशेषताये दुनियाँ से छिपाने के लिए मर्यादित अवतारों की कमी नहीं है| चाहे भगवान श्री राम हों या हनुमान जी| बाबा जी के वेशभूषा से और आयु के इस पड़ाव पर कोई धोखा खाजाता और ऐसा ही उस ट्रेन के टी.सी. के साथ हुआ उसने बाबा जी से टिकिट मांग दी | भला महाराजजी के पास कौन सी टिकिट न होगी पर लीलाधार की लीला, बोले मेरे पास टिकिट नहीं है | टी.सी. ने चैन खींची और बाबा जी से उतरने को कहा | महाराजजी बिना कुछ कहे उतर गए| और उस इंग्लोइंडियन ने गाड़ी को ड्राइवर से बढाने को कहा; पर ये  क्या गाड़ी तो आगे बड़ी ही नहीं | उधर महाराजजी एक पेड़ की छाँव में चिमटा जमीन में गाड़ कर बैठगए| ड्राइवर ने सारी ताकत लगाली पर गाड़ी हिली भी नहीं | जहाँ गाड़ी रुकी ये स्थान नीब करौरी ग्राम के समीप था | गाँव बालेतमाशा देखने आगये भीड़ लग गई| सारी मशक्कत के बाद जब गाड़ी न चली तब ग्राम वाशियों नें उस टी.सी. से महाराजजी को मनाकर बिठाने को कहा उस टी.सी. ने बाबा को मनाया और बहुत ही आदर से गाड़ी में बिठाया | इसी दौरान ग्राम वाशियों ने बाबा जी से अपने गाँव में रुकने की प्रार्थना की जिसे बाबा जी ने सहर्ष स्वीकार किया | गाड़ी चल पड़ी जो पहले हिली भी न थी और बापस आने पर बाबा जी ग्राम में ही एक पूर्व निर्मित मंदिर में रहने लगे| और कालांतर में बसुंधरा कुटुम्बकम मानने बाले मेरे महाराजजी ने इस गाँव के सबसे एकांत अत्यंत निकृष्ट स्थान को अपना रहने का स्थान चुना |जहाँ लोगों ने मिलकर एक कुटिया और गुफा निर्माण किया| और सर्वकालीन बाबा नीबकरौरी जी महाराज लक्ष्मण दास जी के रूप में रहने लगे| जिसे वर्तमान आश्रम के रूप में हम सभी जानते हैं| यहाँ पास में ही बिना गुम्मद बनाए बिना मंदिर मात्र दीबार पर ही महाराजजी ने हनुमान जी का विग्रह बनाया जो हनुमान जी के “हाँथ वज्र और ध्वजा विराजे काँधे मूज जनेऊ साजे” की मुद्रा में है| इसी के पास एक शिवलिंग और यज्ञ कुण्ड का निर्माण हुआ| बाबा जी यही चौपाल लगाने लगे| नीब करौरी ग्राम में आने के बाद महाराजजी को सभी श्री लक्ष्मण दास जी के नाम से जानते थे | और यहीं से प्रारम्भ हुई महाराज जी की अलौकिक कल्याणमयी लीलाएं| इस नाम से महाराजजी की ख्याति दिन पर दिन बढती चली गई | इस मंदिर के पूर्णरूपेण यथाविधि प्रतिष्ठापन में बाबा जी महाराज नें एक माह तक जन हित में हवन और भंडारे के आयोजन कराये| जिसमें सैकड़ों मन हवन सामग्री बहुत-बहुत दूर से लोग लेकर आये और नित्य हजारों नर-नारियों ने हलवा पूड़ी आलू सब्जी का प्रसाद पाया| इसी अवसर पर महाराजजी ने अपनी जटाओं का विसर्जन कर दिया लगभग 1917-18 से यह क्रम लहभग 1935ई०.तक निरंतर चला| महाराज जी ने ये नगण्य सा गाँव तीर्थ बनादिया | और इस के अधिष्ठाता- मूर्तीरूप में हनुमान जी और शरीर रूप मेंमहाराज जी मनसा पूर्ती हेतु सर्वमान्य हो गए|

अपनी युवावस्था में महाराजजी गाँव वालों के साथ गुल्ली डंडा, लुका छुप्पी, खाने-पीने में सर्त लगाना कबड्डी आदि सारे खेल खेलते थे| जब महाराजजी के साथ कोई मथुरा वृन्दावन या गंगा जी पर चलने को कहता तो महाराजजी कहते तुम चलो हम वहीँ मिलेंगे| और महाराजजी मंदिर की गुफा में घुस जाते जाने वालों को महाराजजी वहीँ उपस्थित मिलते| कभी कभी महाराजजी ग्रामवाशियों को भ्रमण स्थान पर भी मिलते और मंदिर बाले उन्हें मंदिर में भी पाते थे दोनों में जिरह देख कर मन मौजी महाराजजी आनंद लेते| महाराज जी ने मंदिर प्रांगण में पक्का चबूतरा बनबाने के लिए एक वैश्य महाशय से कहा तो पहले उन्होंने हाँ कर दी बाद में मुकर गए | अब प्रारम्भ हुआ बाबा जी का कौतुक, महाशय की दूकान में अचानक आग लग गई| वैश्य जी महाराज जी से दौड़ते आये |महाराजजी बोले तुझसे हनुमान जी रुष्ट हो गए | फिर जब उन महाशय ने चबूतरे की हाँ की तो आग स्वयं बुझ गई और कोई नुकसान नहीं हुआ सिर्फ मिर्चें ही जली थी| मंदिर में पीने के पानी की समस्या थी |गाँव के ही निःसंतान वैश्य दम्पति ने अपना दुखडा रोया, महाराजजी ने उनसे कहा एक कुआं मंदिर में खुदबादो संतान हो जायेगी| मंदिर में एक कुआ खुदबादिया गया| उस दम्पति को कन्या हुई तो बाबा जी ने उन्हें धैर्य रखने को कहा बाद में एक पुत्र हुआ जो आज रामसेवक गुप्ता नाम से ग्राम के निवासी है| पर उस कुएं का पानी खरा होने के कारण पीने लायक न था| बाबा जी ने कहा इसमें कुछ बोरे चीनी डाल दो वही किया गया कुछ बोरे चीनी डाल दी गई| भला ऐसा करने से क्या किसी कुएं का जल आजीवन मीठा रह सकता है | पर लीलाधर की लीला पानी हमेशा के लिए मीठा ही है|

इस मंदिर में महाराजजी ने मेले का आयोजन वैशाख शुक्लपक्ष कीत्रयोदशी को वार्षिक कराने लगे साथ ही वर्ष में एक माह का हवन आयोजित होने लगा| इस मंदिर में आने बाले हर दुखी दरिद्री और याचक की इच्छाए पूरी हो जाती थी कई बार मृत और पागलो को भी महाराजजी ने सही कर भेजा | मंदिर में महाराज जी का सेबक उन्ही व्दारा चुना हुआ गोपाल बहेलिया जो एक हरिजन था महाराज जी के भोजन और दूध की व्यवस्था करता था| इस मंदिर में महाराज जी के सामने सभी समान थे चाहे कोई कुछ भी हो सभी को समान सम्मान और अधिकार रहे | बाबा जी गेडुआ नाम के कुत्ते को भी पाले थे जो शिव का भैरव स्वरूप था बाबा जी इस पर ही बैठ कर कभी कभी ग्राम भ्रमण करते थे | महाराज जी से समकालीन नीब करौरी ग्राम का ब्राह्मण वर्ग बहुत नाराज रहता था महाराजजी की सभी के लिए समान दृष्टि इन सभी के क्रोध का कारण थी| एक बार एक धनी व्यक्ति ब्राह्मणों को दान देने के लिए स्वर्ण आभूषण लाया जिसे महाराजजी ने बापस करा दिया फिर क्या था सभी महाराजजी के विरोधी हो गए |आने बाले भक्तो को झूठ बोलकर महाराजजी के खिलाफ भडकाने लगे | एक बार एक धनीव्यक्ति भंडारे हेतु दान के लिए देशी घी लाया तो सभी ने उसे महाराजजी के खिलाफ भड़का दिया और घी बापस करा दिया| महाराजजी उस दिन गंगा जी स्नान करने गए थे जब बापस आये तो उन्हें पूरी घटना पता थी अतः मंदिर को एक सेबिका देवी जी को सौप कर ग्राम को छोड़ कर किलाघाट चले गए| परन्तु अपनी प्रथम कर्म भूमि नीब करौरी के नाम को अपने व्यक्तित्व, अपनी पहचान, अपने नाम का प्रतीक बनाकर अमर कर विश्व विख्यात कर दिया-स्वयं बाबा नीब करौरी बन कर| बाबा बीच बीच में भी यहाँ आते रहे पर गाँव बालों से छिपकर|

जब महाराजजी कुछ समय बाद कानपुर, मेरठ, इलाहाबाद,लखनऊ, आदि जगहों पर भ्रमण करते रहे और उत्तराँचल तक ख्याति बड़ी तब ,महाराजजी का नाम बाबा नीब करौरी हो गया था| महाराजजी जब किसी अपने प्रिय को अपने स्थानों के बारे में बताते तो नीब करौरी का नाम जरूर लेते थे | “श्री सिद्धी माँ से महाराजजी कहते थे, “ माँ-जब तू नीब करौरी जाए गी तो हजारों की भीड़ तेरे कदमों में प्रणाम करे गी|”

बाबा जी के कृपापात्र उनके भक्त हुए जो बाबा जी का परिवार बनगए – बाबा जी के ऐसे अनगिनत चमत्कारों को देखकर और सुनकर लोग स्वतः ही जुडते चले गए मानो उनका रक्षक कष्ट हारी आया हो जिसे पता चलता सभी दौड़े चले आते | जब समाज के राजनीति के ऊँची पहुच बाले लोग बाबा जी की कृपा के पात्र बन गए तब बाबा जी की ख्याति और बड गई| बाबा जी सर्व समाज के कष्टों को हरते, लगातार महीने तक चलने बाले भंडारे लोगो को आकर्षित करते, बिना किसी सहायता दान और मांगे ही बाबा जी निरंतर कार्य करते रहते जो अविश्वसनीय था | असहनीय पीड़ा हो
ज्वर हो सुगर हो या कोई लाइलाज रोग बाबा के पास सभी का उपचार था |

विदेशी भक्त-

जब बाबा जी इलाहाबाद और हनुमानगड़ी दर्शन देते थे तभी विदेशियों की एक टोली बाबा जी से मिली जो बहुत ही प्रभावित हुए | बाबा जी से मिलाने बाले पहले विदेसी शायद भगवान दास (Kermit Michael Riggs) 1960-1965 रहे है|

जब १९६५ में रामदास जी भारत आएर अपनी आध्यात्मिक खोज के लिए तब उनको भगवान दास ने ही प्रेरित किया महाराजजी से मिलने के लिए | राम दास के मिलाने के बाद फिर एक एक कर विदेशी जो भी भारत आध्यात्मिक खोज में अत महाराजजी से बिना मिले नहीं रह पाता था |

He American vocalist known for his performances of Hindu devotional music known as kirtan (chanting the names of God). He has released eight albums since 1996. He is also sometimes referred to as the “Rockstar of Yoga”, most notably at the 2013 Grammy Awards.

  • Parvati Markus is a developmental editor and writer of spiritually oriented non-fiction books and memoirs. Since her time in India with Maharajji (1971-72), she has worked on books by various members of the satsang, from Ram Dass’s classic Be Here Now to Dada Mukerjee’s By His Grace and The Near and the Dear to Krishna Das’s recent Chants of a Lifetime.
  • Saraswati Markus (Robin Eisen Tiberi)  Saraswati Markus is the Founder of Nourishing Life Center of Health & Yoga. She is a doctor of Chinese medicine, a leading Women’s health expert, and a Yogini. In the year 2000, hearing the chants of Krishna Das led her to Ram Dass and Maharaji which all continue to be central streams and influences of her work and life. Saraswati is on the Advisor Circle to Ram Dass and the Love, Serve Remember Foundation, a multi-generational education and service organization dedicated to continuing the teachings of Sri Neem Karoli Baba Maharaj and Ram Dass.
  • Steven Paul “Steve” Jobs was an American information technology… Jobs traveled to India in mid-1974to visit Neem Karoli Baba at his Kainchi ashram with his Reed friend (and later Apple employee) Daniel Kottke, insearch of spiritual enlightenment. When they got to the Neem Karoli ashram, it was almost deserted because  Neem Karoli Baba left his body in September 1973.
  • Mark Zuckerberg -Facebook CEO Mark Zuckerberg revealed that when his company was going through a tough patch, Steve Jobs advised him to visit a temple in India, where the Apple co-founder had also experienced life-changing spiritual reflection.
  • Shyamdas Shyamdas met Maharaji in the 1970’s while Maharaji was still in the body.
  • Nainaa rao   BHAJANSINGAR OF MAHARAJ JI WITH KRISHANA DAS “Antarayaami – Knower of All Hearts” by Nina Rao offers the practice of chanting born from her South Indian roots and influenced by her many years of chanting in the USA.
  • Juliya robert  Religious beliefs Roberts disclosed in a 2010 interview for Elle magazine that she believes in and practices Hinduism.
  • Jai Uttal (born June 12, 1951) is an American musician.
and  many more as Raghu Markus, Balaram das, Hanuman das, Sita, Ramgiri Durga Ma from Germany, Draupadi from Greece.
 
बाबा जी द्वारा बनबाया गया पहला मंदिर- सबसे पहला मंदिर बाबा जी ने नीब करोरी  ग्राम जनपद फर्रुखाबाद में बनबाया |  सर्वप्रथम जब ग्राम में आये तब बाबा जी ग्राम में ही एक पूर्व निर्मित मंदिर में रहने लगे| और कालांतर में बसुंधरा कुटुम्बकम मानने बाले मेरे महाराजजी ने इस गाँव के सबसे एकांत अत्यंत निकृष्ट स्थान को अपना रहने का स्थान चुना |जहाँ लोगों ने मिलकर एक कुटिया और गुफा निर्माण किया| और सर्वकालीन बाबा नीबकरौरी जी महाराज लक्ष्मण दास जी के रूप में रहने लगे| जिसे वर्तमान आश्रम के रूप में हम सभी जानते हैं| यहाँ पास में ही बिना गुम्मद बनाए बिना मंदिर मात्र दीबार पर ही महाराजजी ने हनुमान जी का विग्रह बनाया जो हनुमान जी के हाँथ वज्र और ध्वजा विराजे काँधे मूज जनेऊ साजे की मुद्रा में है| इसी के पास एक शिवलिंग और यज्ञ कुण्ड का निर्माण हुआ| बाबा जी यही चौपाल लगाने लगे| नीब करौरी ग्राम में आने के बाद महाराजजी को सभी श्री लक्ष्मण दास जी के नाम से जानते थे | और यहीं से प्रारम्भ हुई महाराज जी की अलौकिक कल्याणमयी लीलाएं| इस नाम से महाराजजी की ख्याति दिन पर दिन बढती चली गई | इस मंदिर के पूर्णरूपेण यथाविधि प्रतिष्ठापन में बाबा जी महाराज नें एक माह तक जन हित में हवन और भंडारे के आयोजन कराये| जिसमें सैकड़ों मन हवन सामग्री बहुत-बहुत दूर से लोग लेकर आये और नित्य हजारों नर-नारियों ने हलवा पूड़ी आलू सब्जी का प्रसाद पाया| इसी अवसर पर महाराजजी ने अपनी जटाओं का विसर्जन कर दिया लगभग 1917-18 से यह क्रम लहभग 1935ई०.तक निरंतर चला| महाराज जी ने ये नगण्य सा गाँव तीर्थ बनादिया|अन्य प्रिय भक्त , दादा मुखेर्जी इलाहाबाद, श्री गुरु दत्त शर्मा कानपूर , श्री तुला राम शाह नैनीताल , श्री के  के  शाह  नैनीताल , श्री जगन प्रसाद रावत आगरा , श्री शंकर दयाल शर्मा (भू . पु . राष्ट्रपति ) , श्री वी . वी . गिरी (भू . पु . राष्ट्रपति ) , राजा भद्री ( पु.उप राज्य पाल हिमाचल प्रदेश ) , शिव दत्त जोशी ( किशनपुर नैनीताल )  , भगवान सहाय ( राज्य पाल उत्तर प्रदेश ) , श्री केहर सिंह जी    ( लखनऊ ) , श्री इन्दर बाबू ( किच्छा ) , श्री जीवन दादा ( हल्द्वानी ) , श्री देव कामता दीक्षित ( कानपूर ) , डॉक्टर करौरी ( दिल्ली ) , श्रीमती सरोज पांडेय ( दिल्ली ) , श्री चन्द्र शेखर शर्मा जी ( दिल्ली ) . हरदा (कर्नाटक) श्री पदम सिंह (भूमियाधार) ,श्री तुला राम शाह जी ( नैनीताल), शंकर व्यास जी (बनारस), हबीब खान (वृन्दावन)|.बाबा जी द्वारा स्वयं बनबाए गए मंदिर- प्रथम हनुमान मंदिर बाबा जी द्वारा बनाबया हुआ नीब करोरी ग्राम में है |दूसरा उत्तराख्गंद में – बजरंग गढ़ नैनीताल से १.२ किलोमीटर दूर हनुमानगढ़ी नैनीताल हल्द्वानी मार्ग में|भूमियांधार नैनीताल (काठगोदाम अल्मोड़ा रानीखेत मार्ग)कैची धाम भवाली (नैनीताल)काकड़ीघाट हनुमान मंदिर नैनीतालपिथोरागढ़ हनुमान मंदिरनया हनुमान मंदिर पनकी कानपुरलखनऊ में पास पास दो मंदिरसंकटमोचन हनुमान मंदिर शिमलाश्री हनुमान  मंदिर हनुमान नगर वृन्दावनदिल्ली में जौनापुर आश्रमबाबा जी को हनुमान जी का साक्षात अवतार कहा जाता है-सन १९६० -७० के दशक में बाबा की ख्याति और मान्यता देश की सीमाओं को लांघ कर सात समुन्द्र पार योरोप , अमेरिका ,मेक्सिको आदि पाश्चात्य देशों में फैली ! इन देशों के अनेकों प्रतिष्ठित नागरिकों ने बाबा की मंत्रणा से “हनुमत भक्ति ” को अपनाया ! उन विदेशी हनुमान भक्तों के “बाबा” के द्वारा दिए नाम हैं , रामदास ,कृष्णदास ,भगवानदास और सगीतज्ञ जय उत्तल तथा सुप्रसिद्ध सिने कलाकार जूलिया रोबर्ट्स आदि ! इन भक्तों ने केवल हनुमत भक्ति ही नहीं की बल्कि इन्होने बाबा को हनुमान का अवतार भी माना ! कुछ निष्ठावान भक्तों ने तो “बाबा” में ” श्री हनुमानजी” के प्रत्यक्ष दर्शन किये !
स्वतंत्र भारत सरकार के तत्कालीन डिफेन्स मिनिस्टर  डॉ०  कैलाश नाथ काटजू ने बाबा जी को साक्षात् हनुमानजी की मंगलमूर्ति माना ! काटजू जी को विश्वास हो गया था कि बाबा आठों सिद्धिया प्राप्त कर चुके हैं ! उन्होंने बाबा द्वारा अधिकृत “अणिमा”, “प्राप्ति”, “महिमा” , “वशित्व” अदि सिद्धियों की चर्चा करते हुए प्रयाग में एक सार्वजनिक सभा में यह घोषणा की थी कि बाबा साक्षात हनुमानजी के अवतार हैं और मानवता के प्रति दया और करूणा के कारण सबकी पीड़ा हरने और जन जन का मंगल करने के लिए धरती पर अवतरित हुए हैं !बाबा जी के मुख्य सन्देश–  काम में राम देखो ! काम ही पूजा है ! मस्तिष्क को सांसारिकता  से दूर रखो ! बेकार विचारों को रोक न पाओगे तो प्रभु को कैसे पाओगे ? प्रेम करो ! तुम जितना भी प्यार बाटोगे उसका कई गुना होकर प्यार तुम्हे मिलेगा ! जानते हुए किसी को भूखा न रहने दो ! जितना बन पाए पर सेवा करो !
सर्वशक्तिमान प्रभु  को सदा याद रखो ! केवल तुम्हारे शुद्ध आचार – व्यवहार से तुम्हें प्रभु की प्राप्ति हो जायगी ! मोक्ष भी प्राप्त हो जायगा ! प्रतिदिन ईश्वर का स्मरण भजन -पूजन करो  !  सत्य वचन बोलो !कुछ महान विभूतियों द्वारा बाबा जी के लिए कथन- अनेक साधू संतों और विद्वानों ने अपनी पुस्तकों और पत्रिकाओं में महाराजजी के सम्बन्ध में अपने अनुभव अंग्रेजी में व्यक्त किये:- 

  • श्री शिवानंद आश्रम ऋषिकेश कि पत्रिका ‘दी डिवाइन लाइफ , में यदा कदा बाबा के बारे में लेख प्रकाशित हुए है|
  • उपरोक्त आश्रम के वर्त्तमान अध्यक्ष श्री स्वामी चिदानंद जी ने सन १९७६ में “बाबा नीम करोली” शीर्षक में अपने एक लेख में उनकी अलौकिकताओं का वर्णन करते हुए ‘वंडर मिस्टिक ऑफ नार्दर्न इंडिया , कहा है|
  • उन्होंने बाबा जी को ‘पॉवर्स ऑफ पावर, और ‘लाइट्स ऑफ लाइट, कहा है|
  • फ्रांस के चिकित्सक डॉ० ऐ० जे० वेनट्राब ने जो भारत में संन्यास लेने के बाद स्वामी विजयानंद नाम से जाने गए, अपनी पुस्तक “इन दी स्टेप्स ऑफ योगीस” में बाबा के सम्बन्ध में रोचक अनुभव व्यक्त किये |
  • “हास्टिंग दी गुरु ऑफ इंडिया” नामक पुस्तक में एन मार्शल ने भी बाबा जी कि अलौकिक शक्तियों कि प्रसंसा की है|
  • भारतीय संत श्री स्वामी राम ने, जो सयुक्त राज्य अमरीका में ,हिमालय अंतर्राष्ट्रीय योग विज्ञान और दर्शन, संस्थान के अध्यक्ष हैं अपनी पुस्तक “लिविंग विद हिमालय मास्टर्स” में बाबा के सम्बन्ध में अपने अनुभव व्यक्त किये हैं|

बाबा जी के परिवार में सदस्य- बाबा जी के परिवार में आज तो सदस्यों की संख्या अगणित है अर्थात जितने भी भक्त बाबा जी की कृपा का लाभ लेते है वो उनका परिवार ही है | परन्तु फिरभी उनके सामजिक गृहस्थ जीवन में उनके दो पुत्र व एक पुत्री हुई जिनके नाम क्रमशः श्री अनेकचंद शर्मा श्री धर्मनारायण शर्मा व पुत्री श्री मती गिरिजा जी है |

 

बाबा जी के चमत्कार– बाबा जी ने अपने जीवन में अनेको चमत्कार किये जिनमे सभी का कल्याण निहित था पर कुछ ऐसे चमत्कार है जो बाबा जी की अलग छवि बनाते है| जैसे – जब बाबा जी बावानियाँ में थे तब उनकीं उम्र 13 से 18 के बीच थी और बाबा जी जल में डूब कर तपस्या करते थे, चरवाहों का भोजन चुरालेते थे और तालाब से स्वादिष्ट पकवान फेक कर देते थे जब वे चरवाहे लडके उनसे अपना भोजन माँगते थे|

नीब करोरी ग्राम के पास रेलगाड़ी का टीसी के टिकिट माँगने पर रोक देना और उसके आग्रह करने पर बैठते ही गाड़ी का चलना|

नीब करोरी आश्रम में भूखे होने पर खुद के द्वारा बनाई बजरंगवली की मूर्ती पर डंडे से प्रहार करना | महासमाधि में जाने के बाद भी भक्तों को दर्शन देना हनुमान रूप में भी दर्शन और भक्तों के कष्टों को विना कहे ही हर लेना|

बाबा जी के अनेकों मंदिरों पर होने बाले भंडारों में प्रसाद का कम न पडना , विखंडित हनुमान मूर्ती को देखते ही सुरक्षित कर देना आदि अनेको ऐसे उदाहरण है जिससे बाबा जी की पहचान अन्य संतों से अलग हो जाती है|

 

सिद्धि माँ- एकबार इंडिया होटल नैनिताल में बाबा जी सामने एक हनुमान जी के मंदिर पर बैठे थे की अचानक इंडिया होटल की उपरी मंजिल की ओर इशारा कर बोले- पूरन यहाँ ऊपर कात्यायनी रहती है  जिसकी वजह से हनुमान को यहाँ आना पड़ा| बाबा जी पूरन दा को मौज ही मौज में अपना और माँ का परिचय दे गए|

तब माँ की शादी हुई ही थी कुछ दिनों बाद माँ भी अन्य माताओं के साथ आने लगी और बाबा जी के दर्शन लाभ लेने लगी | और बाबा जी उनकी दिनचर्या बता उनकी प्रसंशा करते | धीरे धीरे माँ बाबा जी की सेवा में समर्पित हो गई और अपने परिवार को पूर्ण कर एक दिन बाबा जी की सेवा के लिए सारी सुख सुविधाओं का त्याग कर बाबा जी के आश्रम में सेवा में आगे|

एक दिन माँ को बाबा जी के चमत्कारी रूप को देखते देखते संसय हुआ की आखिर बाबा जी कौन हैं और माँ ने मौक़ा देख पूछा कि आखिर आप कौन हैं तब बाबा जी ने कहा – “तू गीता के सातवें अध्याय का सातवाँ श्लोक पड़ती है- मैं वही हूँ|” इसके बाद माँ के सारे भ्रम दूर हो गए और पूर्ण सेवा में समर्पित हो गईं|

  • बाबा जी कि विदेश यात्रायें- बाबा जी ने कभी कोई लिखित तौर पर भौतिक तरह से विदेश यात्रा नहीं कि और न ही कहीं विदेश में रुके हैं | परन्तु अनेकों भक्तों ने अपनी आँखों से बाबा जी को अमेरिका में, जर्मनी में, ब्रिटेन आदि देशों में देखा और बाबा जी से प्रेरणा पाकर वे भारत में बाबा जी के आश्रमों में आये और बाबा जी के परिवार के सदस्य हो गए|
  • आज बाबा जी के प्रमुख और लोकप्रिय आश्रम – वर्त्तमान समय में बाबा जीके सबसे लोकप्रिय और प्रसिद्ध आश्रम कैची आश्रम नैनीताल, हनुमान गढ़ नैनीताल, काकड़ीघाट आश्रम, वृन्दावन आश्रम , जौनापुर आश्रम दिल्ली, जन्मभूमि आश्रम अकबरपुर, हनुमान सेतु लखनऊ, नीब करोरी धाम फर्रुखाबाद, पनकी नया हनुमान मंदिर|

 

  • बाबा जी का रहन सहन, भोजन, प्रिय भक्त- विश्व की यह महानतम विभूति अद्भुत शक्तियों से सम्पन थी |उनकी दिव्य देह अनेक प्रकार की आश्चर्जनक लीलाओं का श्रोत रही है| बाबा की कथनी और करनी अत्यंत सरल और लोकिक मालूम होती थी पर यह नितांत ही दिव्य होती| उनकी वाणी दिव्य उनकी  दृष्टि दिव्य उनका  स्पर्श दिव्य  रहता|  एकबार दर्शन हो जाने पर सपरिवार उनका भक्त बनजाना स्वाभाविक था, पर वर्षों साथ  रहकर भी उन्हें जान सकना संभव न था|किसी की भी करनी उनकी दृष्टि से परे नहीं थी; वे सभी से पूर्व परिचित जान पड़ते थे और नव आगंतुकों से उनके सगेसम्बंधियों का नाम लेकर बात करते थे| भूत भविष्य और वर्त्तमान की उन्हें पूर्ण जानकारी होती| भारत वर्ष के अनेक महापुरुषों  में जो निजी विलक्षणताये थी वे सभी सामूहिक रूप[ से बाबा जी में बिद्ध्मान थी| बाबा जी की सरलता सौर सहजता का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता  है  कि बाबा जी के उत्तरप्रदेश में ५० वर्ष रहने के बाद भी लोग नहीं जान पाए की बाबा नीब करोरी किस  विभूति का नाम है|   बाबा जी अत्यंत सरल और सहज स्वभाव के थे हंसी ठिठोली और प्रेम का भाव अनंत था | अपने भक्त हो या शत्रु बाबा जी कि कृपा के पात्र सभी थे जो बाबा जी को जानते भी न थे और अचानक अल्पमृत्यु के शिकार हो जाते यदि बाबा जी हुए  तो निश्चय ही उन्हें जीवनदान दे दिया | भक्तों के सारे रोग स्वयं ही लेलेते और उन्हें निरोगी कर देते| बाबा जी की जीवन रेखाए इच्छा मृत्यु कि भविष्यवाणी करतीं थी जिसे ज्योतिषाचार्य श्री शंकर व्यास जी ने पड़  लिया था किन्तु बाबा जी ने ये राज किसी को भी बताने से मना कर दिया था|  बाबा जी ने कभी भाषण या प्रवचन नहीं दिए वे इसे भाषा का खिलवाड़ मानते थे |   महाराज जी ने अपने आपको कभी भी किसी के उपर गुरु के रूप मैं थोपने की चेष्टा नहीं की । चेला बनाने की प्रार्थना पर कह देते , ” मैंई काउ को चेला नाऊ तोइ कैसे बनाये लूँ। ” महाराज जी कहा करते कि हम भक्त बनाते हैं शिष्य नहीं । पर किसके भगत ? अपने नहीं ? कदापि नहीं केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए आध्यात्मिक भगत।महाराज जी कहा करते मैं कुछ नहीं करता , केवल हृदय परिवर्तन करता हूँ।  खिलवाड मानते थे|  कोई आग्रह करता तो बाबा जी  कह  देते –“ हम पड़े –लिखे नहीं हैं “ और बात को टाल जाते बाबा जी की दृष्टि समदर्शी थी| उनके दरवार में गरीव-अमीर  धर्म जाति देश के बंधन नहीं थे| बाबा जी के भाव सर्वकल्याण से भरे थे यही रास्ता उन्हों ने अपने भक्तों को अपनाने के संकेत दिए| बाबा जी के आर्यावर्त के लिए अगाध प्रेम था एक बार बाबा जी चर्च लेंन में दादा मुखजी के घर थे किसी भक्त ने बाबा जी से कहा की – बाबा जी चीन ने भारत के ऊपर आक्रमण कर दिया है |बाबा जी ने कहा कुछ नहीं होगा, हमें जगाने आया है |उसके सातवें दिन सैनिक चीन सीमा में बापस हो गए | भारत सरकार ने अपनी सीमा निर्धारित कर तार बंधवादिये|  बाबा जी को भोजन में दाल आंटा चना आदि कि मिस्सी रोटी और दाल पसंद थी मिठाई में जलेबी अति पसंद थी नमकीन आदि भी बाबा जी को बहुत पसंद थी | अंत समय में बाबा जी ने सभी कुछ त्याग दिया था सिर्फ फलाहार ही करते थे| बाबा जी के प्रिय भक्तों में श्री सिद्धि माँ जोशी जी का परिवार श्री पूरनदा का परिवार श्री केहर सिंह जी श्री गुरुदत्त शर्मा जी श्री शंकर व्यास जी श्री देवकामता दीक्षित जी  श्री राम दास, द्रोपदी, राधा ,सीता  श्री कृष्णदास लैर्री ब्रिलियंट आदि अनेक भक्त ऐसे है जो बाबा जी का परिवार हैं|

बाबा जी का राम नाम लिखना – बाबा जी के लिए यह एक लीला मात्र ही होगी कि जिसे जन्मजात सिद्धियाँ प्राप्त हों उसे कोई राम नाम कि सलाह दे | बाबा जी ने स्वयं कहा है –“ न ही मेरा कोई गुरु है और न ही मैं किसी को शिष्य बनाता हूँ|” बाबा जी ने कभी कोई प्रवचन नहीं दिया और न ही  सभा  लगाईं – वह कहते थे –“ हम सिर्फ ह्रदय परिवर्तन करते हैं|”  वह हजारों उदाहरण छोड़ गये जिनसे हम उनके अवतारी होने पर भरोषा कर सकते हैं | बाबा जी स्वयं के लिए कहते थे –“ समूर्ण संसार मेरा घर है और सभी मेरे बच्चे है|” बाबा जी द्वारा अवतारी होने का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि जब उनसे कोई उनका शिष्य बनाने के लिए  ह्कहता तब बाबा जी कहते –“ हम शिष्य नहीं भक्त बनाते है|”

 

बाबा जी का महासमाधी का काल – बाबा जी का समय अंतिम समय  उनके पूर्व निर्धारित मंच के अभिनेता कि तरह रहा मानो वह सभी कुछ जान कर ही कर रहे थे और अपने प्रिय भक्तों को उलझा कर  रखा था | बाबा जी की अंतिम यात्रा का समय 9  सितम्बर से  11 सितम्बर सन  1973 अनंत चतुर्दशी पर्व की सुवह  1 बजकर 30 मिनट तक चलता है|

 

कब ब्रह्मलीन हुए- श्री वृन्दावन धाम में महाराजजी ने केबल हनुमान मंदिर एवं आश्रम कि स्थापना करबाई थी और अपने जाने से पूर्व वृन्दावनेश्वरी देवी के प्रतिष्ठापन कि व्यबस्था कर दी थी| परन्तु वृन्दावन आश्रम के भीतर पूर्व में कभी भी देवी अनुष्ठान नहीं कराया था | वर्ष १९७३ मार्च माह में बाबा जी श्री देवाकामता दीक्षित को साथ ले  आश्रम के प्रांगण में घूम रहे थे | बाबा जी कहीं न कहीं आसन ग्रहण करें गे ही – यही सोच दिक्षित जी अपनी बगल में एक छोटा चटाई (आसन) भी दबाये थे | कुछ देर बाद बाबा महाराज कुछ रुक रुक कर बोलने लगे (मानों अपने से ही)-“ कहाँ बैटठूँ “? कहाँ बैटठूँ?” और फिर (कुछ जोर से – लालू दादा से)- बोलते क्यों नहीं कहाँ बैटठूँ? लल्लू दादा को समझ नहीं आ रही थी यह बात- बरामदा भी  था और घास का मैदान भी था बैठने के लिए| तभी एक स्थान विशेष को देखकर बाबा स्वयं ही बोल उठे “ यहाँ बैठता हूँ“| दादा ने वहीँ चटाई विछादी और बाबा वहीँ बैठ गये और कुछ देर बाद बैठ कर चल दिए|

और फिर वर्ष 1973 कि चैत्र कि नवरात्रों में महाराजजी ने आश्रम के प्रांगण में उसी स्थान पर ही अलीगढ के एक भक्त श्री विशम्भर जी से नौ दिन का देवी-पूजन एवं हवं यज्ञ करवा डाला !! और जब पूर्णाहुति हो गई तब बाबा महाराज ने उस स्थल-विशेष कि यह कहकर घेरा बंदी करा दी कि, “यह जगह अब शुद्ध हो गई है | इसे घेर कर सुरक्षित कर दो |” बाबा जी के इस आदेश का अर्थ अथवा स्थल-विशेष कि घेराबंदी तब केबल रहस्य मात्र बकर रहगया था | और जब  11 सितम्बर 1973 को वृन्दावन में भक्तों द्वारा यह निर्णय न लिया जा सका कि महाप्रभु का पार्थिव शारीर अंतिम संस्कार हेतु कहाँ (जन्मस्थान अकबरपुर, हरिद्वार या वृन्दावन में जमुना किनार)  ले जाया जाए तब महाराजजी ने ही वृन्दावन के प्रसिद्द योगी पागल बाबा को प्रेरित कर आश्रम भिजबाया और उनके द्वारा पार्थिव शारीर को आश्रम के प्रांगण में उसी स्थल-विशेष में ही पंचभूतों में विसर्जित कर देने हेतु आग्रहपूर्ण राय दिलावादी जिसे उपस्थित भक्त समूह ने भी स्वीकार कर लिया महाप्रभु कि इच्छा अनुरूप|

और फिर उसी शुद्ध किये गए स्थल में ही महाराजजी के लीला शरीर को अनंतचतुर्दशी के पावन पर्व में अग्निदेव को समर्पित कर दिया तथा ट्रस्टियों द्वारा उसी पवित्र  स्थल में जहाँ महाराजजी के लीला शरीर को पंचभूतों में विसर्जित किया गया था, अस्थिकलश का स्थापन कर उसके ऊपर एक समाधी रूप चबूतरा भी बनादिया गया था जहाँ नित्य ही प्रभात एवं सायंकाल में महाप्रभु कि पूजा-अर्चना ,आरती एवं परिक्रमा होने लगी | इस परम पवित्र परम पुनीत भूमि पर भक्तगण एवं स्थानीय जनता अपनी मनोकामना-पूर्ती हेतु प्रार्थना करने हरवर्ष हजारों कि संख्या में आते रहते हैं |

कैचीधाम कि ही भाँती महाराजजी ने वृन्दावन ट्रस्ट मण्डल को भी अपने मंदिर के निर्माण एवंम मूर्ती स्थापना हेतु प्रेरित किया | यहाँ भी बाबा जी अपनी दिव्य लीलाएं करते रहे और मंदिर निर्माण को व मूर्ती स्थापना को अलौकिकता प्रदान करते रहे| ट्रस्ट मण्डल द्वारा जब इस स्थल पर महाप्रभु का मंदिर स्थापना करने कि योजना बनीं, कार्यान्वित भी होने लगी, तो लगा महाप्रभु का मंदिर और इसका आकार व विन्यास रुच नहीं रहा है| अस्तु कुछ काल तक कार्य भी रुका रहा | अब तक बनाई गई दीवारों आदि में भी बदलाव किये गए और जब महाराजजी कि रूचि के अनुरूप सभी कुछ होने लगा तो मंदिर भी शीघ्र पूरा होगया|

कुछ वर्ष यह मंदिर यूँ ही विना मूर्ती (विग्रह) के ही रहा | परन्तु वर्ष 1981 कि वसंत पंचमी के पवन पर्व में इस मंदिर में सरकार कि मूर्ती कि स्थापना हो गई दादा मुखार्जी एवं सर्वदमन सिंह ‘रघुवंशी’ द्वारा | यहाँ मूर्ती को देखकर भी कैचिधाम जैसी प्रारंभिक भावना आने लगी कि महाराजजी कि मुखमुद्रा से इसका सामंजस्य नहीं बैठता | पर अपनी मूर्ती स्वयं गढने बाले” बाबा जी का वाही चमत्कार यहाँ भी उसी प्रकार स्पष्ट होने लगा!! शीघ्र ही कुछ ही अंतराल के उपरांत में बिना किसी भ्रान्ति स्पष्टरूप से द्रस्तिगोचार हुए, मूर्ती के मुख मण्डल में बाबा जी कि मुखमुद्रा स्वरुप लेने लगी और अब तो महाराजजी का ही प्रतिरूप हो चली है- प्रसंन्नमुद्रा युक्त|

वेदपाठियों के विभिन्न मंत्रोच्चारण के मध्य विभिन्न तीर्थों के जल के 1008 घटकों से दूध, दही, घी, मधु, सर्करा आदि से अभिषेक-स्नानोपरांत महाराजजी को गंगा जल के शुध्दोदक से स्नान कराया गया | वस्त्राभूषणों में महाराजजी कि अभिरुचि बाला परिधान धोती एवं कम्बल उन्हें पहनाया गया | तरह तरह के सुगन्धित पुष्पों एवं पुष्प मालाओं से उनका अभिनन्दन किया गया | अनेक प्रकार के फल एवं नाना प्रकार के भोग अर्पित किये गए | आश्रम में उपस्थित अनेक भक्तों द्वारा बाबा जी महाराज के जयकारों से आश्रम पुनः पुनः विध्द होता रहा |

तदुपरांत हजारों कि संख्या में देश विदेश से आये भक्तों ने एवं वृन्दावन वासियों ने महाप्रभु का भोग प्रसाद पाया | ब्राह्मणों को साधुओं को जोगियों को द्रव्य एवं वस्त्रादि देकर संतुष्ट किया गया | इस महोत्सव के पूर्व रामायण जी का अखंडपाठ, विश्नुयाग, कीर्तन, भजन, हनुमान चालीसा, सुन्दरकाण्ड  आदि के पाठों से आश्रम का सम्पूर्ण क्षेत्र एक नैसर्गिक छाता प्राप्त कर चुका था और समस्त भक्त मंडली में इस आल्हाद्पूर्ण वातावरण का उल्लासपूर्ण प्रतिबिम्ब द्रष्टिगोचर होता रहा|

इस प्रकार उस वर्ष से बसंतोत्सव महाप्रभु के मंदिर के प्रतिस्ठापन दिवस में बदल गया |

  • नीब करोलि और नीब करौरी में अंतर- बाबा जी ने लक्ष्मी नारायण के रूप में जन्म लिया था जब वे सुदूर सत्य कि खोज में निकले तब लोग उन्हें लक्ष्मण दास के नाम से जानते थे , परन्तु बावानियाँ में पहुचने पर तलैया बाबा कहलाये | उसके बाद नीब करोरी ग्राम में आने पर नीब करोरी बाले बाबा कहलाये जिसमें बहुत ज्यादा भ्रम कि स्थिति आगई| नीब करोरी ग्राम को कभी कभी अंग्रेजी में NEEB KARORI लिखा जाता है, जबकि पहले इसे NEEB को NIB और KARORI को  KARAURI लिख दिया जाता था | उल्लेखनीय है कि खुद महाराजजी द्वारा नीब करोरी लिखा गया था | जिसे हिंदी में कभी कभी नीब (अर्थात नींव) करौरी  को करोरी (करारी अर्थात मजबूत ) से बदला गया है| पश्चिम के भक्तों ने इस नाम को हिंदी सीखने से पहले बोलने कि कोशिश कि और वो इसे नीम के पेड़ से जोड़ गए जिसका अर्थ एक भारतीय पहचान से जोड़ा गया अर्थात एक भारतीय पेड़ | और करोली यानी एक स्थान अतः पश्चिमी भक्त इसे NEEM KAROLI नाम से संबोधित करने लगे जिसे वो बाबा जी के लिए BABA NEEM KAROLI JI  कहने लगे हालाँकि यह बाबा जी कि ही इच्छा थी तब ही यह संभव था | शायद बाबा जी को खुद नामों की सीमा में बंधना मंजूर नहीं |

प्रेरणा श्रोत- श्री महाराजजी

संकलन माध्यम- ,अलौकिक यथार्थ, अनंतकथा अमृत,  अनोखा सफ़र, ,महाराजजी की बेवसाइड और ब्लॉग से,

साधारण मनुष्य गलतियों का भण्डार है हम सभी की क्षमा और प्रेम उसका मार्गदर्शक हैं और प्रेरणाश्रोत है अपने अनुज से होने बाली गलतियों को कृपा कर मन में न रखें और हमें सुधार के लिए जागरूक करें|

MAHARAJJI

Introduction–  India has always been a land of mystics and saints. Since ages, India has seen many great souls. These enlightened beings have stablished and maintained the spiritual fabric of the country. They continue to do so in order to show path to the people. India has always been under their protection and guidance. These beings have sacrificed their own needs and benefits for the welfare of the people. They do not want anything from people but their only purpose is to help and uplift humans. They continue to show light in darkness. There has been one such supreme saint, who was a staunch devotee of Lord Hanuman (monkey god). In fact, many people considered him as Lord Hanuman himself. This supreme soul has influenced and improved lives of many disheartened and disappointed people. Wherever he went, there would be huge gatherings of devotees always seeking his guidance. In his darbar (royal court), devotees sought him for both worldly and spiritual matters. This saint never discriminated between rich or poor. We are talking about Sri Neeb Karori Baba, who is considered incarnation of Lord Hanuman in this age of Kali (Kaliyuga).Millions of pranams (a respectful greeting made by putting one’s palms together and often touching the feet of the person greeted) to the lotus feet of this being, who has incomparable strength; who is extremely compassionate, kindhearted and merciful; who is loved by all; who is saint of saints; who is guru of gurus; who is Lord Narayan to some and to some Lord Shiva; who is food provider for some and for some God himself. To some he is Lord Hanuman and to others just ‘Our Beloved Maharajji’. Words fall short to describe HIM and neither is anyone capable of describing the unfathomable divinity of HIM. Without HIS blessings no one could write about HIM. And it is with HIS blessings that this attempt is made, justlike a drop in the ocean…

Birth

Baba Neeb Karori Maharaj was born on Thursday, 27th November 1903 (according to Hindu calendar that is the Shukl paksh Ashtmi in the month of Margsheersh). He was born in the village of ‘Akbarpur’ (now in Firozabad district, earlierin Agra district) in the state of Uttar Pradesh in India. He was born into a wealthy and well-cultured Brahmin family of jamindars (landlords) with no shortage of any comforts. His father’s name was Shri. Durga Prasad Sharma and mother’s name was Smt. Kausalya Devi. At the time of his birth astrologers had announced that he will never have shortage of money in his life. He was given the birth name of ‘Lakshmi Narayan Sharma’.

Childhood Lilas(stories)

As a child, Maharajji was very quiet and peaceful by nature and liked to remain alone. One day, Maharajjifore-warned his father, that robbery will take place in the house in the night. His father ignored him, thinking it was just a child’s play. But indeed, the same night the house was robbed heavily. From that day onwards, his father would pursue him to remain home. Maharajji’s detachment from the material world often worried his father.

Leaving Home

Maharajji left home twice- First in 1913 and then in 1958.

Maharajji’s biological mother passed away when he was very young. His father re-married so that Maharajji could be taken care of. According to the customs of child marriage of those days, Maharajji was married at the age of 11. But the Gauna ceremony (This ceremony takes place several years after marriage. Before the ceremony, the bride stays at her natal home) was not done, when Maharajji left home at age 13. When he wanted to leave home, he did a lila – Maharajji’s father had to leave the house for some work for three days. At that point, Maharajji did some mischief which made his father very angry. As a result, his father asked his step-mother to lock Maharajji up in a room. The mother locked him. After that, it so happened, that his step-mother completely forgot that Maharajji was locked up. On the third day, Maharajji packed his clothes, jumped out of the small window in the room and eloped. As he was going out of the village, somebody saw him and reported to Maharajji’s house. It is then, that the parents realized that Maharajji was gone. Thus Maharajji left house at age 13 to lead a life of arenunciate. For the child who was too absorbed in God, thislila of mistreatment at home, was just an excuse to leave and go on the path of worldly detachment. Often the people in Akbarpur would say- He had always been tied to RAM.

Later in life, on his father’s request, Maharajji did return home to fulfill his duties towards his wife (whom he had married as a child and was now suffering since her husband had left home). After return, for many years he lead a householder’s life and fathered three kids- two sons and a daughter. He was a very loving father to his children and did his householder’s duties diligently. After the two sons were self-dependent and the daughter was married, Maharajji again left home in 1958.

Living as an ascetic (life and place)

After leaving house at age 13, Maharajji first went to Rajasthan and then from there he went to Rajkot, Gujarat and lived in a temple. The mahant (head) of the temple was very much pleased by Maharajji’s service and devotion and thus declared Maharajji as his successor. Some of Maharajji’s colleagues were not happy with this decision of the head. To avoid any controversy, Maharajji left the place. After that he reached Babania village of Morbi district (in Gujarat) and stayed at an ashram of avaishnav (follower of Lord Vishnu) saint. Here he was called Baba Lakshman Das. Near the ashram, there was a lake in which Maharajji used to stand till neck deep water for hours and do meditation. The cowherds from neighboring areas used to come near the lake to graze their cattle. They used to hang their lunchboxes on trees. When they would come to eat, they would find their lunch boxes empty and so would start throwing stones in the lake. Standing in the lake Maharajji would bring out various delicious food items and throw them back to the cowherds. Thus he came to be known as Talaiyaa Baba (Baba from the lake). Maharajji remained in this place for 6 to 7 years and continued his sadhana. We may think that such preliminary preparations of sadhana ortapasya (austerities) were needed for obtaining sidhis (spiritual powers). But in fact for Maharajji, these were just some activities done to keep him away from the maya (illusion) of the trigunas (sattva, rajas, tamas) of the psych/mind and panch bhutas (five elements- earth, water, fire, air and aether) of the body. The tapasya was definitely not done to obtain various siddhis since Maharajji was already a siddha (perfected being). Maharajji did not need to perform any tapasya. Every awakened and perfected being, has to perform these kriyas (activities) to keep away from the attraction of panch maha bhutas and purify the rajas and tamasgunas. Sometimes Maharajji used to say- “By the age of 17, there was nothing left for me to do”. By the lake, Maharajji consecrated a Hunuman murti (statue) and built a small temple. Thereafter, he left the place, leaving the ashram under a female saint called Rambai. He went touring around India and in south India he went to various Hanuman temples. During this span, he was referred by various names- Lakshman Das, Handi Baba, Tikonia Baba. When he came to Vrindavan, people started calling him Chamatkari Baba.

Work Place (Lila site)

Maharajji’s actual work place should be considered as the village of ‘Neeb Karori’ in the district of Farrukhabad in Uttar Pradesh. It has been said that, Maharajji with a very young body and divine light on his face, carrying a kamandal(pot for holy water) and chimta(tongs that produce chiming sound) was seen seated in a first-class compartment of a train. Maharajji, who had siddhis right from birth, did not need a train to travel. But it was just another lila. Even Lord Ram or Lord Hanuman, would have to take ordinary exterior appearance, to hide their divinity and perform lilas. People often get misguided by their appearance and this is exactly what happened. The Anglo-Indian ticket collector (T.C.) of the train asked Maharajji for the ticket. It is not possible that the divine being, that has tickets to everything in the world and beyond, would not have a mere train ticket. But it was all a play. Maharajji said- “I do not have a ticket”. So the T.C. pulled the train chain and asked Maharajji to get down off the train. Without saying anything, Maharajji got down of the train and sat under the shade of a close by tree with his chimta. The T.C. asked the driver to drive the train. But it so happened, that the train would not move. There seemed to be no mechanical fault but the train would not move. This incident happened very close to the village of NeebKarori. The villagers gathered to see the spectacle. After much effort when the train did not move, some villagers asked the T.C. to pacify the saintly looking person whom he had insulted and made to get off the train. The T.C. requested Maharajji and asked him to re-board the train with dignity. Maharajji agreed and boarded, and the train started to move. During this, the villagers of NeebKarori, recognizing Maharajji’s divinity, asked him to live in the village. Maharajji agreed and upon return he started living in a Hanuman temple in the village of Neeb Karori. Maharajji, a believer in Vasundhara Kutumbakam (whole world is one family), choose this really aloof from the world place, as his abode. The villagers built a small hut and a gufa (underground cave) for Maharajji to live. Maharajji started living here as Lakshman Das. Today, this place is called Neeb Karori Ashram. Here Maharajji, without any temple dome, carved out the vigrah (body) of Hanuman in the walls, with his own hands.0

Maharajji kept roaming in Lucknow, Meerut, Allahabad, Kanpur and many other places and got extremely famous. By the time, his popularity reached Uttaranchal; his name became well-known as NeebKarori Baba. To the near and dear ones, whenever Maharajji would talk about his places, he would always talk about NeebKarori. Maharajji used to tell Sri Siddhi Ma- “Ma, when you will go to Neeb Karori village, thousands of devotees will do pranamsto your feet”

List of some important books-

  • Be Here Now by Baba Ram Dass
  • Miracle of Love by Baba Ram Dass
  • By His Grace- A Devotee’s Story by Dada Mukerjee
  • Be Love Now by Baba Ram Dass with Rameshwar Das
  • Chants of a Lifetime by Krishna Das
  • It All Abides in Love by Jai Ram Ransom
  • Barefoot in the Heart by Keshav Das
  • Love Everyone by Parvati Markus
  • Doing Your Own Being by Baba Ram Dass
  • Bunch of Memories by KamlaMukerjee
  • Prem Avatar by P. C. Joshi “Mukunda”
  • AnantKathamrit by P. C. Joshi “Mukunda”
  • The Near and The Dear by Dada Mukerjee
  • Divine Reality by Ravi Prakash Pande “Rajida” (AlokikAthartha in Hindi)
  • I and My Father are One by R. K. “Rabboo” Joshi
  • SmritiSudha
  • RahasayaDarshii
  • The Baba of NeebKarori
  • AtmaNivedan

Maharajji’s lifestyle, food and his favorite devotees-

Maharaaji liked missi roti (made from wheat or chana flour) along with daal. Amng the sweets, Jalebi was his favorite. He did like Namkeens too. Towards the end of his life, he stopped eating these kind of food and mostly ate fruits. Among his favorite devotees are- Sri Siddhi Ma, family of the Joshi, family of Purnanad, Gurudutt Sharma, Shankar Vyas, Devkamta Dixit, Ram Dass, Krishna Das, Larry Brilliant, Draupadi, Radha, Sita and more

Maharajji’s habit of writing ‘Ram Ram’ in his diary-

Maharajji was born with sidhis (spiritual powers) and thus he did not had to take name of god. But it is only a lila that he maintained a diary in which he wrote ‘Ram Ram’ everyday. He said- “Neither I had a Guru, nor I make anyone my disciple. Maharajji never gave any discourses or held meetings. He used to say- “I only change hearts of people”. He did so many lilas and there have been so many incident, which should not leave a doubt for anyone that he was an ‘Avatar’. The best proof of Maharajji being an incarnation of God is that, he used to say- “I don’t make disciples, I make devotees”, “The whole world is my house and everyone are my children”.

Miracles by Maharajji-

In his lifetime, Maharajji did many miracles for the welfare of people, but among them there are a few striking ones which portray a different picture of Maharajji. For example- Maharajji was only between age 13 to 18 when he was in Babania and performed tapasya inside the lake, when he would steal lunch of cowherds and in return give them delicious food from the lake, when the train near NeebKarori village did not move because Maharajji was asked to get off the train, when he was hungry and started hitting the Hanuman statue (made with his own hands) in NeebKarori with a stick. Even after Mahasamadhi, he continued to give darshan to devotees. He gave darshan in form of Hanuman too. Dissolved sufferings of devotees without a word (like an antaryami).  Never was there a shortage of food at the bhandaras in his various temples. Securing the damaged Hanuman murti, upon seeing it. All these and many more incidences, show a different identity of Maharajji from the rest of the saints.

Sri Siddhi Ma-

Once Maharajji was seated in a Hunuman temple, which was opposite to the India hotel in Nainital. Suddenly, pointing to the top floor of the hotel he said, “Puran, here on top, Katyani Ma lives. Because of her, Hanuman had to come”. Thus Maharajji very lightly revelaed his true identity to Puranda.

Shortly after a few days of her marriage, Siddhi Ma started coming for Maharajjidarshan along with other women. Maharajji used to praise her daily routine of managing both household and devotional duties. Gradually, Ma became completely devout to Maharajji’s service. After completing her household duties, she left the comforts of her home, and became a servant in Maharajji’s ashram. After seeing various miracles by Maharajji, Ma started wondering about Maharajji’s identity. Thus, at a suitable opportunity, she asked him, who he actually was. Maharajji said- “Do you know the 7th shloka of the seventh chapter of Bhagwat Gita? I am that”. After this Siddhi Ma did not have any doubts and she completely devoted to Maharajji’sseva.

During his last days, just before the Mahasamadhi, Maharajji gave his diary (where he wrote Ram Ram) to Siddhi Ma and said- “Now on, you write in this book”. Maharajjibestowed all his divine qualities to Sri Ma. Maharajji had told Ma- “Wherever you will live, bliss will live there”. Ma is inseparable from Maharajji and today in her form, Maharajji gives darshan.

Mahasamadhi time of Maharajji-

Maharajji’s end time was according to his plan. Like a pre-planned exit of an actor from his own stage, he did everything knowingly and kept the devotees confused. The duration of his last yatra (journey) is from 9th September to 11th September 1973, till 1.30pm on the day of Anant Chaturdashi.

Difference between NeemKaroli and NeebKarori-

Maharajji’s birth name was Lakshmi Narayan, but when he went on his spiritual journey to find the absolute truth, he was known as Lakshman Das. In Babania, he was called Talaiya Baba. At the village of NeebKarori, he got famous by the name of, Baba from NeebKarori, which led to confusion. The village name “NEEB KARORI” was previously written in English as “NIB KAROURI”. Maharajji himself referred it as NeebKarori. In Hindi Neeb or Neev means ‘foundation’ and Karori or Karari means ‘strong’.  Thus the name means ‘strong foundation’. It was an apt name that Baba chose. When the westerners arrived, and before they learned Hindi, they started calling Neem, which is the Indian name of a tree. Neem tree seemed perfect to identify with India. And Karoli meant a place. Thus, the westerners started calling him, Baba NeemKaroli. Maharajji didn’t seem to mind this distinction and perhaps it was his wish too, since he himself didn’t want to get tied down to the mere limits of the names.

Members of Maharajji’s family-

Today Maharajji’s family is huge and all those who are graced by him, become his devotees thus joining his ever-expanding family. However, his householder family includes his two sons and one daughter. Their names are Shri Anekchand Sharma, Shri Dharma Narayan Sharma and Shrimati Girijaji, respectively. Currently, Maharajji’s entire family is thriving and happy, and is both spiritually and materially prosperous.

                                              श्री महाराजजी के अमृत वचन

  • मैं सभी का गुरू हूँ |
  • सम्पूर्ण संसार मेरा पुत्र है, हम संसार के पिता हैं |
  • हमारा अस्तित्व सिर्फ दूसरों की सेवा के लिए है |
  • हमारे पास कोई शक्ति नहीं है, हम कुछ नहीं जानते, जो भी कहना है हनुमान जी से कहो |
  • हम सिर्फ हृदय परिवर्तित करते हैं |
  • एक संत की नज़र सदैव उसके अन्तः ध्यान में या प्रभु चिंतन में केंद्रित रहती है | यदि वह एक पल भी इससे दूर होता है तो वह अपनी पवित्रता खो देता है |
  • हमारा इस जन्म में उन्हीं लोगों से संयोग होता है, जिनसे हमारा सम्बन्ध किसी न किसी रूप में पूर्व जन्म में रहा हो, और इस संयोग की एक अज्ञात पर निश्चित अवधि होती है अंत में वियोग हो जाता है |
  • जिस तरह श्रद्धा के बिना कोई मूर्ति पत्थर मात्र है, जिस तरह मंदिर दीपक के बिना अधूरा है, इसी प्रकार मानव भजन और सेवा के बिना पूर्ण नहीं |
  • सत्य की खोज में ‘मोह, सबसे बड़ी बाधा है |
  • काम, लालच, गुस्सा, और मोह ये सब नरक के रास्ते है |
  • काम में राम को देखो |
  • सभी महिलाओं को माँ के समान समझो, सभी की सेवा अपनी माँ की तरह करो, सम्पूर्ण संसार को माँ रूप में देखोगे तो अहंकार नष्ट हो जाये गा |
  • राम भी चले गए, कृष्ण भी चले गए, हम भी चले जायेंगे, पर मरेगे नहीं |
  • राम का नाम मन में इस तरह रखो जैसे बैंक में पैसे रखते हो |
  • गुरु के अंतर्ध्यान हो जाने पर गुरु स्थान ही गुरु स्वरुप हो जाता है |
  • याद करने से हम आजाते हैं |
  • जो हमारी तस्वीर के सामने होता है हम उसकी हर बात सुनते हैं |
  • राम का नाम लेते रहो भले ही बेमन  से लो,एक दिन ऐसा आएगा की राम का नाम स्वतः ही मुख से निकलने लगेगा |
  • पति कैसा भी हो परिवार को एक सूत्र में बांधे रखने के लिए पत्नी को धिर्य और निष्ठा से काम लेना चाहिए |
  • हम शिष्य नहीं भक्त बनाते हैं |
  • यदि आप दूसरों से प्रेम नहीं कर सकते तो आप अपने लक्ष्य को भी नहीं प्राप्त कर सकते |
  • अपने पति को समर्पित पत्नियाँ योगिओं से भी महान होती है |
  • संत और भगवान सर्व समर्थ हैं वे सब जानते हैं, उनसे कुछ मांगना नहीं पड़ता आप के लिए जो उचित है वह स्वतः दे देते हैं |
  • शरीर जब बूड़ा हो जाता है तब यह किसी काम का नहीं रह जाता, इसका मोह नहीं करना चाहिए |
  • सभी से प्रेम करो, सभी की सेवा करो, सभी को भोजन कराओ |
  • धन दूसरों की मदद के लिए उपयोग करना चाहिए |
  • शरीर एक प्रेत्यान है हर किसी को मरना है, व्यक्ति रोता है स्वार्थ और मोह के कारण, मरने वाला भी अपने परिवार के लिए रोता है |
  • दाह सस्कार से आत्मा की पुनः शरीर धारण करने की इच्छा कम होजाती है |
  • जो अपने सारे कार्य ईश्वर को समर्पित कर करते है , उनके सारे कार्य स्वतः हो जाते हैं |
  • अपना आत्मबल बढाओ सब काम बनते चले जायेंगे |
  • मैं किसी के अधिकार में नहीं हूँ और न ही हमें किसी और की शक्ति के बारे में पता है |
  • न मेरा कोई गुरू है और न ही किसी को अपना शिष्य बनाता हूँ |
  • साक्षात्कार के लिए लगन लगाना बहुत आवश्यक है |
  • कर्म करो कर्म करने से प्रभु श्री राम प्रसन्न होंगे |
  • ईश्वर के आगे सब गरीब हैं |
  • एक गुरू को अपने शिष्य के वारे में सब पता होना चाहिए |
  • तुम मुझे छोड़ सकते हो पर मैं जिसका एक बार हाँथ पकड़ लेता हूँ फिर कभी नहीं छोड़ता |
  • मनुष्य से क्या मांगना वह दे क्या सकता है |
  • मंदिर सिर्फ एक पत्थरों का ढेर है आप की श्रद्धा और विश्वास उसे पूज्य बनाते हैं |
  • अपने दिल के आईने को शुद्ध रखो तो तुम भगवान को देख सकोगे |
  • ईश्वर भाव खाता है, वह भाव का भूखा है, उसका जो भी कार्य हो भाव से हो, फिर तो तुम उसके वह तुम्हारा |
  • ये सब उसका है वो दे या न दे उसकी मर्जी हम सिर्फ प्रार्थना कर सकते हैं |
  • माता पिता के जीवित रहते भगवान की खोज अवश्यक नहीं, माता पिता की चलती फिरती मूर्ति की पूजा कठिन है और यही सबसे बड़ी साधना है|
  • भगवान की पूजा करने का सबसे अच्छा तरीका है  कि तुम हर एक व्यक्ति में भगवान को देखो |
  • जिस किसी को भी आप अपना गुरू मान लेते हैं, वह एक साधारण इंसान हो या एक पागल व्यक्ति आप के लिए वह ईश्वर का भी ईश्वर हो जाता है |
  • गुरु, मृत्यु और भगवान को सदैव याद रखना चाहिए |
  • हमें दुःख बहुत प्रिय है, क्योकि हम दुःख में अपने प्रभु को याद रखते है सुख में भूल जाते हैं |
  • सभी धर्मं मूलतः एक हैं सब ईश्वर की ओर ले जाते हैं | सभी मनुष्य भी एक हैं | वह रक्त सभी में है जो हृदय से लेकर शरीर में दौड़ता है |

                                                   Quotes by Maharaji Neem Karoli Baba / Neeb Karori baba ji

  •  “I am everybody’s guru.”
  •  “I don’t want anything. I exist only to serve others.”
  •  “I have no powers. I don’t know anything.”
  • “I am the father of the world. The whole world is my child.”
  • “Ask God or Hanuman. I’m just an ordinary being. I can do nothing.”
  • “Love all men as God, even if they hurt you or shame you. Be like Gandhi and Christ.”
  • “The great sadhus don’t have a human body. They are omnipresent. If a saint changes form, he doesn’t necessarily have to take on a human body. The soul is the small form and the human body is the huge form.”
  • “If you want to see God, kill desires. Desires are in the mind. When you have a desire for something, don’t act on it and it will go away. If you desire to drink this cup of tea, don’t, and the desire for it will go away.”
  • “Always speak the truth.”
  • “In India, yoga flows in the blood of people.”
  • “It is entirely against the traditions of the ashram that people should get away without getting prasad.”
  • “Often one goes for one thing and finds another.”
  • “Love is the strongest medicine. It is more powerful than electricity.”
  • “Total truth is necessary. You must live by what you say.”
  • “When a man has reached the point where he can sit in meditation for six months, there is no need of eating, no need of latrine or of rest. Only one drop of amrit nectar from the top of the head to the body keeps him alive. If a tiger eats that body there is no care, but only when the life comes back to the body will there be pain.”
  • “Lust, Greed, Anger, Attachment – These are all paths to hell.”
  • “Attachment is the strongest block to realization.”
  • “Serve as Hanuman served.”
  • “See all women as mothers, serve them as your mother. When you see the entire world as the mother, the ego falls away.”
  • “A pure woman is better than a hundred yogis. Women are more open to love God.”
  • “Women are higher than yogis if they are loyal to their husbands.”
  • “Marriage is more attachment. You need more devotion and discipline to have union with God when you are married.”
  • “If you desire a mango at the moment of death, you’ll be born an insect. If you even desire the next breath, you will take birth again.”
  • “When you are sad or in pain or sick or you witness any cremation then you actually learn the many truths of life.”
  • “It doesn’t matter if you are married or not, it only matters how much you love God. He chided: “This world is all attachment. Yet you get worried because you are attached.”
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