बनारस के श्री शंकर प्रसाद व्यास, कैंची आश्रम में आये हुए थे। एक दिन महाराज उनसे बोले, ” इन पर्वतों में सिद्ध आत्माएं वास करती हैं, तू इन्हें रोज दिन में हनुमान जी की कथा सुनाया कर।” ‘कृष्ण-बलराम’ कुटी में इसके लिए व्यवस्था भी कर दी गई। कैंची के निर्जन स्थान में उन दिनों श्रोतागणों की संख्या बहुत कम थी, कुछ ग्रामीण महिलाएं ही उनकी कथा सुनने आती थी। व्यास जी का विद्वतापूर्ण प्रवचन बृहत् जनसमुदाय में हुआ करता था, इस परिपेक्ष्य में उन्हें यह कार्य नीरस प्रतीत होने लगा। किसी प्रकार वे तीन दिन तक यह कार्य करते रहे, तदनन्तर आपने बाबा से निवेदन किया कि कथा तो वे बराबर सुना रहे हैं, पर उनकी कथा को सुनने वाले यहाँ नहीं हैं। बाबा बोले, “तुमको लोगों से क्या लेना, हमने तुझसे सिद्ध आत्माओं को कथा सुनाने के लिए कहा था।” वे फिर बोले, “देख कल एक बुढ़िया भी कथा सुनने आयेगी। उसकी भद्दी शक्ल देख कर उससे घृणा मत करना, नहीं तो वह श्राप दे जायेगी।”
दूसरे दिन जब वे इस अरुचिकर कार्य को करने लगे तो उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि ‘कृष्ण-बलराम’ कुटी का कमरा प्रतिष्ठित व्यक्तियों से भरा था। उपस्थित लोगों में थे श्री कमलापति त्रिपाठी, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश, श्री वाइ. वी. चह्वाण, गृहमंत्री, केन्द्र सरकार, श्री श्यामा चरण शुक्ला, मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश और अनेक राजनैतिक दल के नेतागण। इन सबके आगे वह बुढ़िया भी बैठी थी जिसका वर्णन बाबा कर चुके थे। प्रवचन के समाप्त होने पर वह बुढ़िया सबसे पहले कमरे से बाहर चली गयी और ऐसी गायब हुई कि फिर नहीं दिखाई दी। यह सब खेल बाबा की प्रेरणा शक्ति का था। कथा सुनने का निमंत्रण किसी को दिया नहीं गया था और न इसके लिए इश्तहार ही बाँटे गये थे।