आश्रमों में कैसे जाएँ |

जब आप किसी के प्रति अस्थवान होते है । उस ईस्ट के आश्रम जाते है तब आप इस ईष्ट से स्वयं मिलते है आश्रम के रूप में – अर्थात् जिस गुरु या संत का वह निवास था अब उनके शरीर त्यागने के बाद वह उस गुरु या ईष्ट का शरीर हो गया है । “जब कोई संत अपना शरीर त्यागदेता है तब आश्रम ही उसका शरीर हो जाता है । – श्री महाराजजी ” इसका सीधा सा अर्थ है कि हमारा आश्रम में व्यवहार या इसके आते जाते जो हम करते है वह सभी उस गुरु या ईष्ट के लिये ही जाने । आप का झूठ , आप का मजाक, आप का धोखा, आप का किसी भी व्यक्ति के प्रति व्यवहार , आप की सेवा , आप के वहाँ संस्कार, आप की भावना , सभी उस गुरु या ईष्ट के प्रति होता है । अब आप ख़ुद समझिए कि आप आश्रमों तक जाने आने में क्या कमाते है और क्या पाने के आप अधिकारी है । जय गुरुदेव

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