पाषाण देवी के पुजारी के रूप मे

 

उस दिन एकादशी थी । गुरूप्रिया अपने से मन्दिर जा रही थी । रास्ते में उसे पाषाण देवी के पुजारी मिले ।गुरूप्रिया उन्हें भोजन कराने अपने घर ले आई । भोजन खाते खाते पण्डित जी की दृष्टि सामने दीवार पर टँगी महाराज जी की एक फ़ोटो पर गई ।
और वे बोल उठे ,यह आपने किस पाखण्डी की फ़ोटो टाँग रखी है ?”
पण्डित जी की इस बात से गुरूप्रिया के दिल पर बहूत चोट लगी और वे मन ही मन उस पण्डित जी से नाराज़ हो गयी । उन्होंने निश्चय किया था कि पण्डित जी को १० रू, दक्षिणा देगी पर इस आघात के कारण आपने अपना विचार बदल दिया और उसे १ रू का नोट देने का निश्चय किया जबकि आपके डिब्बे में दो नोट पड़े थे , एक १ का और एक दस का । जब पण्डित जी भोजन कर चूके तो उनको १ का नोट देकर विदा किया ।
इसके बाद आप लीला माई के घर गई वहाँ महाराज ठहरे थे । बाबा के भोग के समय गुरूप्रिया वही उपस्थित थी । बाबा ने थोड़ा सा ही भोजन किया और सब छोड़ दिया । बहूत आग्रह करने पर वे बोले ,” आज गुरूप्रिया ने हमें बहूत खिला दिया और हम इससे १० रू भी ठग लाये । ” गुरू प्रिया बाबा की बात को समझ नहीं पायी । उन्होंने पण्डित जी को भोजन कराया था और १ रू दक्षिणा दी थी । वे बोली “१० रू नहीं महाराज १ रूपया । ” बाबा ने अपने कम्बल से वही नया १० का नोट निकाल कर दिखाया । जब लौटकर घर गुरूप्रिया ने अपना डिब्बा निकाला तो वहाँ १ का नोट पड़ा था १० का नही । बाबा को पाखण्डी कहने वाले पण्डित जी कौन थे ?- स्वंय महाराज !
जय गुरूदेव
आलौकिक यथार्थ