एक बार बाबाजी , तिवारी जी के साथ भूमियाधार के बाहर सड़क के किनारे बरामदे में आस बिछाये बैठे थे, अचानक ही वे तिवारी जी से बोले, “चाय बनाकर लाओ।”
तिवारी जी ने सोचा, “बाबाजी तो चाय पीते नहीं, ज़रूर कोई भक्त आ रहा होगा।”
तिवारी जी ने चाय चढ़ा दी बनने को। कुछ देर बाद एक गाड़ी में से एक पंजाबी दंपत्ति उतरे, जिनकी आयु लगभग 50-55 की होगी। बाल भी कुछ कुछ सफ़ेद थे।
वे बाबाजी के पास आकर रोने लगे। बाबाजी बोले, “रो मत ! कह दिया न, लड़का हो जायेगा।”
उनके कोई औलाद नहीं थी। तिवारी जी सोचने लगे, शायद बाबा टाल रहे हैं। इस उम्र में बाबा औलाद होने को कह रहे हैं।
जब वे चले गए, तो बाबाजी बोले, “क्या हम झूठे हैं ?”
हमें अपने पर ग्लानि हुई और हमने बाबा से क्षमा माँगी।
इस बात के 15 महीने बाद, वही दंपत्ति एक बार फ़िर से बाबाजी के पास आए। इस बार वे कुछ रूपए व डिब्बा लेकर आए थे और औरत की गोद में नन्हा सा बालक था।
मुझे सारी घटना याद आ गई और मैं चकित रह गया। बाबा की कृपा बरस रही थी उन पर ।